शनिवार, 30 अप्रैल 2011
बुधवार, 27 अप्रैल 2011
कविता
सिर्फ तुम्हारी
बैठता हूँ जब जब
इंतजारमें मैं तुम्हारे
श्रृंगार का सभी सामन लिये
तुम लाख बुलाने पर भी
नहीं आती तो नहीं आती | जब आती हो तो आ जाती हो
कभी भी कहीं भी अकेले में
मेले में या झमेले में |
झकझोर कर अपने नरम नरम हाथों से
कन्धों को मेरे कहती हो
समेट लो मुझे बाहों में अपनी
और करो मेरा श्रृंगार जी भर छंद उपमा
और अलंकार से
मैं तुम्हारी हूँ
सिर्फ तुम्हारी | अनंत आलोक
सोमवार, 25 अप्रैल 2011
वंदना
गौरी तेरी छवि है
विद्या की तू है देवी
ए हंस वाहिनी मां
पूजा करूँ मैं तेरी
जिस पर हो राज तेरा
पढ़ना हमें सिखा दो
लिखना हमें बता दो
विद्या का दान दे माँ
जीवन सफल बना दो
ग्रंथों में तू लिखी है
पुराणों में तू छिपी है
जिस ओर देखता हूँ
मुझे तू ही तू दिखी है
मीकी को तुने तारा
तुलसी भी तेरा प्यारा
ये रविन्द्र मीरा बाई
मुंशी भी था तुम्हारा
कहता आलोक तेरा
सब को है तुने तारा
अपनी शरण में लेकर
उद्हार कर हमारा
विद्या की तू है देवी
ए हंस वाहिनी मां
पूजा करूँ मैं तेरी
आ जा तू मेरे दिल में
दिल पर विराज हो जा
छोटा सा दिल है मेराजिस पर हो राज तेरा
पढ़ना हमें सिखा दो
लिखना हमें बता दो
विद्या का दान दे माँ
जीवन सफल बना दो
ग्रंथों में तू लिखी है
पुराणों में तू छिपी है
जिस ओर देखता हूँ
मुझे तू ही तू दिखी है
मीकी को तुने तारा
तुलसी भी तेरा प्यारा
ये रविन्द्र मीरा बाई
मुंशी भी था तुम्हारा
कहता आलोक तेरा
सब को है तुने तारा
अपनी शरण में लेकर
उद्हार कर हमारा
रविवार, 17 अप्रैल 2011
शनिवार, 16 अप्रैल 2011
हाइकू
झरना झर
दिन रात बहता
पानी ठहरा
जंगल बल जलता जाय फिर
बारिश खाता
किताबें भरी
पुस्तकालयों में
हैं धूल खाती
महंगे लेप
बदल न सकते
असली रंग
पौधे बहुत
आँगन फुलवारी
सजावट को
निश्चित नहीं
आएगा वापस वो
गया सुबह
मर चूका है
इंसान भीतर
आदमी तेरे
रहना जिन्दा
जिंदगी में करले
काम जिन्दों के
जाता कहाँ है
फेर कर मुंह को
करके खता
रह जाएगा
ये स्वर्ण खजाना
धारा यहीं पे
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