सिर्फ तुम्हारी
बैठता हूँ जब जब
इंतजारमें मैं तुम्हारे
श्रृंगार का सभी सामन लिये
तुम लाख बुलाने पर भी
नहीं आती तो नहीं आती | जब आती हो तो आ जाती हो
कभी भी कहीं भी अकेले में
मेले में या झमेले में |
झकझोर कर अपने नरम नरम हाथों से
कन्धों को मेरे कहती हो
समेट लो मुझे बाहों में अपनी
और करो मेरा श्रृंगार जी भर छंद उपमा
और अलंकार से
मैं तुम्हारी हूँ
सिर्फ तुम्हारी | अनंत आलोक
प्रिय साथिओं,
जवाब देंहटाएंआओ साहित्य की बातें करें| कुछ अपनी, कुछ उनकी सबकी बातें आम आदमी की बातें |
bahut hi achhi rachna
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