रविवार, 17 अप्रैल 2011

मुक्तक

अब आदमी का इक नया प्रकार हो गया
आदमी का आदमी शिकार हो गया 
जरूरत नहीं आखेट को अब कानन गमन की
शहर में ही गोश्त का बाजार हो गया

  खुदा की एक खूबसूरत नैमत हैं बच्चे 
ये बचे न गर होते , लगता आँगन सूना सूना
खुशियों के चमन खिलते हैं जहाँ होते हैं बच्चे

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